तराशा हुस्न ओढ़े फिरते हैं वह,
पर इश्क को आह भरने की इज़ाज़त नहीं।
पल भर में सांसें चुरा लेते हैं,
और हमें शिकायत करने की इज़ाज़त नहीं।
न जाने कब से दीवाना बना रखा है ,
पर हमें दिल लगाने की इज़ाज़त नहीं।
उनकी हसी भी एक कशिश है,
पर हमें मुस्कुराने की इज़ाज़त नहीं।
नज़रों के इशारे से सब कुछ बयां करते हैं,
और हमें हाल-ऐ-दिल सुनाने की इज़ाज़त नहीं।
ख्वाबों में आना अब उनकी आदत है,
पर हमें उनकी नींद उड़ाने की इज़ाज़त नहीं।
उसके शब्द कानों को ग़ज़ल मालूम पड़ते हैं,
पर हमें शायराना होने की इज़ाज़त नहीं।
तराशा हुस्न ओढ़े फिरते हैं वह,
पर इश्क को आह भरने की इज़ाज़त नहीं।
पर इश्क को आह भरने की इज़ाज़त नहीं।
पल भर में सांसें चुरा लेते हैं,
और हमें शिकायत करने की इज़ाज़त नहीं।
न जाने कब से दीवाना बना रखा है ,
पर हमें दिल लगाने की इज़ाज़त नहीं।
उनकी हसी भी एक कशिश है,
पर हमें मुस्कुराने की इज़ाज़त नहीं।
नज़रों के इशारे से सब कुछ बयां करते हैं,
और हमें हाल-ऐ-दिल सुनाने की इज़ाज़त नहीं।
ख्वाबों में आना अब उनकी आदत है,
पर हमें उनकी नींद उड़ाने की इज़ाज़त नहीं।
उसके शब्द कानों को ग़ज़ल मालूम पड़ते हैं,
पर हमें शायराना होने की इज़ाज़त नहीं।
तराशा हुस्न ओढ़े फिरते हैं वह,
पर इश्क को आह भरने की इज़ाज़त नहीं।
3 comments:
बेहतरीन!
आह कमबख्त इश्क
अति सुन्दर......... अभिव्यक्ति ।
आपकी रचनाएं पढ़कर हॄदय गदगद हो गया।
भाव-नगरी की सुहानी वादियों में खो गया॥
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
Post a Comment