कहीं तोह होगी ...वह छुपी छुपी सी
अपनी सी...ख़ामोशी से कुछ कहती
और फिर चुपके से खामोश होती वह।
दीवानी ही है वह... हाँ! दीवानी ही है वह
पीछे पीछे ही हूँ तेरे
अपनी सी...ख़ामोशी से कुछ कहती
और फिर चुपके से खामोश होती वह।
दीवानी ही है वह... हाँ! दीवानी ही है वह
पीछे पीछे ही हूँ तेरे
ऐ बेकाबू धड़कन मेरी,
सांसें बनके तेरी।
सांसें बनके तेरी।
छूना तोह बहुत चाहा...
स्वप्नों के उस पार भी पहुंचे,
ढूँढ़ते हुए तेरे उस अंश को
छुट गया था उन सिलवटों में जो।
बेखबर था मैं भी,
बेखबर हो तुम भी,
चांदनी के हुस्न में,
नहाये थे वह पल भी.
मेरे सपनें, तेरे ख्वाबों
में घुलते,
मेरे गीत, तेरी ग़ज़लों
में डूबे
दो सफ़ेद परिंदे
और फडफडाते पंखों की उड़ान
पे बैठा यह मासूम सा मन।
बस यही सोचता है,
कहीं तोह होगी?
1 comment:
सुन्दर अभिव्यक्ति!
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