कई सालों के बाद आखिर मुझे अपने परिवार के साथ वृन्दावन एवं मथुरा जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वैसे तोह मथुरा पिताजी की जन्मभूमि है और उनका अधिकतर बचपन मथुरा में ही बीता, पर ७० के दशक में दादा-दादी सहित सारा परिवार दिल्ली में आकर बस गया। वैसे तो पिताजी के कुछ रिश्तेदार अभी भी मथुरा में हैं पर इतने सालों के बाद भी परिवार का मथुरा से सम्बन्ध उतना ही गहरा है जितना चालीस साल पहले था। और क्यूँ न हो कृष्ण नगरी का जादू भी कुछ ऐसा है।
हमने अपनी यात्रा कृष्ण - राधा की प्रेम नगरी वृन्दावन से आरम्भ की। मथुरा से १२ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में यमुना तट पर बसा यह छोटा सा गाँव-वृन्दावन। वृन्दावन को ब्रिज का हृदय भी कहा जाता है, वृन्दावन की परम पावन गलियां कृष्ण-राधा की अलोकिक लीलाओं की साक्षी रही हैं। इस पावन भूमि को पृथ्वी का अति उत्तम तथा परम गुप्त भाग कहा गया है। पद्म पुराण में इसे भगवान का साक्षात् शरीर, पूर्ण ब्रह्म से सम्पर्क का स्थान तथा सुख का आश्रय बताया गया है। इसी कारण यह अनादि काल से भक्तजनों का श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। चैतन्य महाप्रभु स्वामी हरिदास, श्रीहित हरिवंश महाप्रभु बल्लभाचार्य आदि अनेक गोस्वामी महान आत्माओं का इसके बैभव को सजाने व निखारने और धर्म परायण भक्तों के लिए संसार की एक अनश्वर सम्पति के रुप में प्रस्तुत करने में सर्व लगा है। यहाँ आनन्द कन्द युगल किशोर श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा की अद्भुत नित्य विहार लीला होता रहता है।
वृन्दावन की प्राकृतिक छटा देखने योग्य है। यमुना जी इसको तीन ओर से घेरे हुए है।यहाँ के सघन कुञ्ञों में भाँति-भाँति के पुष्पों से शोभित लता तथा ऊँचे-ऊँते घने वृक्ष मन में उल्लास भरते हैं। बसंत ॠतु के आगमन पर तो यहाँ की छटा और सावन-भादों की हरियाली आँखों को जो शीतलता प्रदान करती है, वह श्रीराधा-माधव के प्रतिबिम्बों के दर्शनों का ही प्रतिफल है।
इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि वृन्दावन का कण-कण रसमय है। यहाँ प्रेम-भक्ति का ही साम्राज्य है। इसे गोलोक धाम से अधिक बढ़कर माना गया है। यही कारण है कि हज़ारों धर्म-परायण जन यहाँ अपने-अपने कामों से अवकाश प्राप्त कर अपने शेष जीवन को बिताने के लिए अपने निवास स्थान यहाँ बनाकर रहते हैं। वे नित्य प्रति रास लीलाओं, साधु-संगतों, हरिनाम संकीर्तन, भागवत आदि ग्रन्थों के होने वाले पाठों में सम्मिलित होकर धर्म-लाभ करते हैं।
वृन्दावन की प्राकृतिक छटा देखने योग्य है। यमुना जी इसको तीन ओर से घेरे हुए है।यहाँ के सघन कुञ्ञों में भाँति-भाँति के पुष्पों से शोभित लता तथा ऊँचे-ऊँते घने वृक्ष मन में उल्लास भरते हैं। बसंत ॠतु के आगमन पर तो यहाँ की छटा और सावन-भादों की हरियाली आँखों को जो शीतलता प्रदान करती है, वह श्रीराधा-माधव के प्रतिबिम्बों के दर्शनों का ही प्रतिफल है।
इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि वृन्दावन का कण-कण रसमय है। यहाँ प्रेम-भक्ति का ही साम्राज्य है। इसे गोलोक धाम से अधिक बढ़कर माना गया है। यही कारण है कि हज़ारों धर्म-परायण जन यहाँ अपने-अपने कामों से अवकाश प्राप्त कर अपने शेष जीवन को बिताने के लिए अपने निवास स्थान यहाँ बनाकर रहते हैं। वे नित्य प्रति रास लीलाओं, साधु-संगतों, हरिनाम संकीर्तन, भागवत आदि ग्रन्थों के होने वाले पाठों में सम्मिलित होकर धर्म-लाभ करते हैं।
वृन्दावन में कुछ पल रहने के बाद ही वहां की ताजगी आपके मन मस्तिष्क में प्रभाव पैदा करने के लिए काफी है। यूँ तोह वृन्दावन में समय के साथ काफी बदलाव आया है। बड़ी इमारतें , बड़े बड़े बंगले, शानदार बाज़ार, पर कुछ बातें जो एक छोटे शहर को खूबसूरत बनाती हैं वह सादगी अब भी बरक़रार है। वह नुक्कड़ पे साधुओं के वेशभूषा में बैठे लोग, कृष्ण राधा के स्वागत में हर पल सजे बाज़ार, हर गली से सुनाई पड़ता मधुर रसिया संगीत, राधे - राधे पुकारता हर यात्री एवं नागरिक, सारा वातावरण मानो श्री कृष्ण और राधा के प्रेम में सराबोर हो।
अगले कुछ ब्लॉग कड़ियों में मैं वृन्द्वन और मथुरा के मंदिरों एवं कुछ प्रमुख घाटों के महत्व के बारे में अपने पाठकों को बताऊंगा, तथा मथुरा शहर से जुडी कुछ यादें, वहां का हर एक भारतीय के जीवन में जो ऐतिहासिक महत्व है उसके बारे में भी लिखूंगा।
2 comments:
बढिया विवरण .. वीडियो अभी चलाया ही है !!
Govinda !
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