कल्पना हो कभी,
और कभी जीवन का अटूट सच।
सुर हो कभी,
और हो खामोशियों में गूंजने वाली धड़कन भी।
अपनी सी ही हो,
और कभी अनजान खुशी की दस्तक जैसी।
इससे पहले की तुम अपने दिल की बात कहो,
मैं कहना चाहता हूँ की मेरे गाव का रास्ता
एक टूटी पगडण्डी से होकर जाता है,
क्या तुम चल पाओगी
गुलाब तोह नहीं,
पर तुम्हारे हर कदम पर अपनी कल्पना
की रेशमी चादर ज़रूर बीचा सकता हूँ।
वैसे उस पगडण्डी के कांटे तुमको
नहीं चुभेंगे क्यूंकि उनका सारा दर्द
अपने दिल में समाये बैठे हैं।
कब तेरा आएगा पैगाम
यह आस लगाए बैठे हैं।
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