18 फ़रवरी , 2010
सुबह के नौ बज रहे थे और अभी तक हमारे महानुभाव मित्र ने जाने के बारे में ज़िक्र भी नहीं किया था। उनके आलस भरी प्रतिक्रिया को देख मुझे लग रहा था की हमारे कहीं भी जाने की संभावना उतनी ही है जितनी भारत के फुटबाल विश्व कप जीतनी की। खैर हमने हार नहीं मानी थी और उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। दो घंटे और बीते और मेरे सब्र का बाँध अब टूटने ही वाला था। मैंने आखिर पूछ ही लिया " जनाब हम इक्कीसवी शताब्दी में चलेंगे या आपने अगली शताब्दी की बुकिंग करा दी है? " मुझे चिंता में देख मेरे दोनों मित्र मुझे बड़े ही विचित्र तरीके से घूरने लगे। आखिर मेरा भाषण रंग लाया और हमने ठीक बारह बजे अपने गंतव्य यानी के जिल्लिंग को गाजीयाबाद से प्रस्थान किया।
दिल्ली से तक़रीबन ३०० किलोमीटर की दूरी पर , कुमाऊँ की खूबसूरत वादियों की गोद में, ७२००० फीट की ऊँचाई पे बसा - जिल्लिंग। वैसे तोह जिल्लिंग का नाम शायद बहुत ही कम लोगों ने सुना होगा पर जितने भी लोग वहां गए हैं उनके लिए यह किसी जन्नत से कम नहीं रहा है।
जिल्लिंग पहुँचने का रास्ता: जिल्लिंग जाने के दो रास्ते हैं, आप दिल्ली से चलने वाली रानी खेत एक्सप्रेस से काठगोदाम आराम से साडे छह घंटे में पहुँच सकते हैं जहाँ से किराये की टेक्सियाँ भर के चलती हैं जो आपको २-३ घंटों में मटियाल नामक गाँव में उतार देगी।
पर वहां जाने का असली मज़ा तोह खुद की गाडी से है। मेरे मित्र का घर राष्ट्रीय राजमार्ग २४ के करीब होने की वजह से हमने हाईवे बहुत ही जल्दी हिट कर दिया। जल्दबाजी में हम तीनों बिना पैसे निकाले ही चल पड़े जिसका हमें पूरे रास्ते अफ़सोस हुआ। कुछ ही मिनटों में गाड़े हवा से बातें कर रही थी। गर्मीं होने के कारण मैंने स्वेटर पीछे रख दिया था। मेरे मित्र ने भी धुप से बचने के लिए अपने सर पे रुमाल बाँध लिया था। गढ़ मुक्तेश्वर के आते ही मौसम ने यात्रियों के मन को कुछ खुशनुमा कर दिया, शायद गंगा ने इस यात्रा के लिए अपना प्रभाव हम पर छोड़ दिया था।
पर वहां जाने का असली मज़ा तोह खुद की गाडी से है। मेरे मित्र का घर राष्ट्रीय राजमार्ग २४ के करीब होने की वजह से हमने हाईवे बहुत ही जल्दी हिट कर दिया। जल्दबाजी में हम तीनों बिना पैसे निकाले ही चल पड़े जिसका हमें पूरे रास्ते अफ़सोस हुआ। कुछ ही मिनटों में गाड़े हवा से बातें कर रही थी। गर्मीं होने के कारण मैंने स्वेटर पीछे रख दिया था। मेरे मित्र ने भी धुप से बचने के लिए अपने सर पे रुमाल बाँध लिया था। गढ़ मुक्तेश्वर के आते ही मौसम ने यात्रियों के मन को कुछ खुशनुमा कर दिया, शायद गंगा ने इस यात्रा के लिए अपना प्रभाव हम पर छोड़ दिया था।
हापुड़ को पार करते ही हाईवे काफी अच्छा हो जाता है, सड़क पे दूर दूर तक गिनी चुनी गाड़ियाँ ही दिख रही हैं। हाईवे के दोनों तरफ लहलहाते हरे भरे खेत और पेड़ों की कतार जो किसी भी रोड यात्रा का प्रमुख आकर्षण होते हैं।
वैसे जो भी हो, सरकार ने और कुछ किया हो या न किया हो, राष्ट्रीय राज्यमार्ग परियोजना से हम लम्बे रास्ते के मुसाफिरों को काफी लाभ हुआ है। खैर जहाँ कुछ अच्छा काम हुआ है वहीँ कई परेशानिया भी हैं, जैसे की गाज़ियाबाद से रामपुर के बीच में किसी भी बैंक की ATM मशीन ढून्ढ पाना अल्लादीन के जिन्न के बस की भी नहीं। पैसे नहीं होने के कारण हम रास्ते भर भूके रहे। रामपुर तक तोह हम तीनों के पेट में चूहों ने टी-२० क्रिकेट विश्व कप शुरू कर दिया था और पेट में जम के बल्ले बाज़ी चल रही थी। मुझे आज तक इस बात की हैरानी है की इतने लम्बे रस्ते में एक भी ATM मशीन का नहीं मिलना क्या उन सभी सरकारी विकास के दावों को चुनौती नहीं देता?
खैर आखिर हम रामपुर पहुँच ही गए। रामपुर स्टेशन पे हमें अपना पहला ATM दिखा और तब हमारी जान में जान आई। वैसे बढ़ने से पहले मैं रामपुर के बारे में दो शब्द कहना चाहूँगा। रामपुर का नाम हमने अपनी हिंदी फिल्मों में न जाने कितनी बार सुना है जिनमें 'रामपूर का लक्ष्मण' और 'शोले' प्रमुख हैं। इस शहर की बसावट आज भी पुरानी देसी परंपरा और ताजगी से भरी हुई है। वाकई में रामपुर जैसी जगह हमें आज भी अपने बीते हुए अत्तीत और उस खूबसूरत सादगी की याद दिला देती है जो शहरों में ढूँढने से भी नहीं मिलती।
हमें अभी बहुत ही लम्बा रास्ता तय करना था तो इसलिए हमने रामपुर से विदाई ली और पैसे निकाल के हम आगे चल पड़े। देर से चलने की वजह से हमें यह पता चल गया था की हम शाम होने तक जिल्लिंग नहीं पहुँच सकते तोह हमने पहले तोह रुद्रपुर से होते हुए कॉर्बेट में रात को रुकने का तय किया पर फिर एक मित्र की सलाह पर हमने भीमताल में रुकने का फैसला लिया। रात के करीब ७:३० बजे हम भीमताल पहुंचे जहाँ हम होटल लेक रेसोर्ट में रुके। होटल कुछ ख़ास नहीं है पर वहां का खाना बहुत ही अच्छा है और चूँकि हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था तोह हम तीनों खाने पे कुर्सी के भूके नेता की तरह टूट पड़े। न जाने उस रात कितना खा गए, मुझे सिर्फ इतना याद है की प्लेट पे प्लेट खाली होती चली गयी और कुछ ही देर में हम स्वप्न नगर में थे।
इस यात्रा का पहला दिन काफी सुखद बीता, जिल्लिंग से मुलाकात अब कुछ ही घंटों में होगी।
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