कहते हैं हुस्न का गुरूर करना जायज़ है,
पर ज़रा इश्क के दिल से भी कोई पूछ ले कभी,
कैसा लगता है चाँद को
जब चांदनी को खुद से अलग करना पड़ता है।
माना की हुस्न की ताजगी में यह सारी कायनात
धुली हुई सी लगती है,
पर इश्क के जल जाने में भी
एक अजीब कशिश सी है।
जंगलों, वादियों पगडंडियों से गुज़रता वह शांत रास्ता,
स्वप्न नगर को जाता है।
शायद वहीँ कहीं हुस्न की मुलाकात इश्क से हुई थी,
वहीँ छुआ होगा सितारों ने उस विशाल आसमान को,
उस बाँवरे भंवरे को दीवाना किया होगा
किसी अनजान खुशबु ने वहीँ कहीं।
पर शायद ठीक ही कहते हैं,
हुस्न का गुरूर करना...जायज़ है।
ऐ हुस्न - तेरा हर गुरूर सर आँखों पर।
पर ज़रा इश्क के दिल से भी कोई पूछ ले कभी,
कैसा लगता है चाँद को
जब चांदनी को खुद से अलग करना पड़ता है।
माना की हुस्न की ताजगी में यह सारी कायनात
धुली हुई सी लगती है,
पर इश्क के जल जाने में भी
एक अजीब कशिश सी है।
जंगलों, वादियों पगडंडियों से गुज़रता वह शांत रास्ता,
स्वप्न नगर को जाता है।
शायद वहीँ कहीं हुस्न की मुलाकात इश्क से हुई थी,
वहीँ छुआ होगा सितारों ने उस विशाल आसमान को,
उस बाँवरे भंवरे को दीवाना किया होगा
किसी अनजान खुशबु ने वहीँ कहीं।
पर शायद ठीक ही कहते हैं,
हुस्न का गुरूर करना...जायज़ है।
ऐ हुस्न - तेरा हर गुरूर सर आँखों पर।
2 comments:
good one. ISHQ aur HUSN ka meljhol sahi hai.
bahut bahut shukriya mere anjaan dost :) aasha hai tumhe meri aur rachnaein bhi pasand aaeingi.
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