कभी सोचा है, वह स्पर्श जिसका हम इंतज़ार करते हैं, वह स्पर्श जिसे पाने की चाहत में कभी जीवन बीत जाता है, होली के दिन यह रंग दिलाते हैं हमें वह स्पर्श। कभी कभी लगता है इन रंगों की कीमत तोह कोई नेत्रहीन ही समझा सकता। कितनी दिलचस्प बात है, एक वे हैं जिनके पास रंग नहीं और स्पर्श ही उनके जीवन का आधार है, और हमारे पास यह सब रंग होने के बाद भी उस स्पर्श के लिए समय नहीं।
वाकई, मेरे हिसाब से होली को ही नया साल बना देना चाहिए। यह त्यौहार ही तोह हैं जिनकी वजह से मिलना मिलाना लगा रहता है वरना इस राजधानी ट्रेन की रफ़्तार से भागती ज़िंदगी में इतनी सारी खुशियाँ एक साथ मिल पाना कुछ मुश्किल सा लगता है। अरे रे रे इन सब के बीच में एक बात तोह रह ही गई, हमारे हर त्यौहार पर खाने खिलाने का जो लुफ्त्त है वह दुनिया की किसी भी कोने में ढूँढने पर भी नहीं मिलेगा। कमबख्त इन भारतीय नारियों को ऊपर वाले ने कुकिंग क्लास देकर भेजा है धरती पर हम जैसे भूक्कड़ लोगों को सँभालने के लिए। अजी एक चीज़ हो तोह बताएं, दही भल्ले, कांजी, आलू टिक्की, जलेबी...मार डाला पापड़ वाले को। और ऊपर से बीकानेरी गुजिया आय हाय हाय हाय... मुँह में पानी तोह आ ही गया होगा अब तक।
रंगों की इस हुर्दंग से शायद ही कोई छुए बिना रह सकता है। छोटे बड़े सभी को अपनी चादर में समां लेते हैं यह रंग। सात दिन पहले श्री-कृष्ण के वृन्दावन से चली रंगों की टोली आज अपने मौज मस्ती के योवन को पार करती हुई हर चेहरे पे अपनी कहानी छोड़ गई। और इस वादे के साथ की:-
चलेंगी हवाएं अगले वर्ष फ़िर से,
मचेगा यह हुर्दंग यूं ही एक बार फ़िर से,
यह रंगों की टोली अभी भी यहीं है,
जगाएगी राधा इनको एक बार फ़िर से।
जय श्री कृष्ण
2 comments:
Holi khele Raghuveera awadh mein.holi khele Raghuveera........
Jai Shri Krishna....
U have done an amazing job Piyush..... Good Luck Dost!!!!
This is a beautiful post. Keep it up!
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