Pages

Tuesday, April 01, 2008

यह है मुम्बई मेरी जान - दूसरा दिन

मुम्बई आने के बाद पहली सुबह बेहद सुहानी थी, चूंकि हम दादर स्टेशन के बहुत करीब ठहरे हुए हैं, तोह लोकल ट्रेन की धड़ - धड़ और उसकी सीटी कानो में मधुर संगीत सी मालुम हुई। हवा में कुछ नमी सी भी थी जो माहोल को खूबसूरत बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ रही थी। मुम्बई दर्शन का सोच कर ही मैं भीतर बहुत खुश महसूस कर रहा था। इतने दिनों बाद दिल्ली की बेजान सड़कों से मुक्ति जो मिली थी। फटाफट तैयार होकर मैं टेबल पर पहुँचा जहाँ वासु ने ज़बरदस्त नाश्ता लगा रखा था ( दूध , टोस्ट, इडली साम्भर ) बोले तो एकदम झकास बीडू ;)

वैसे तोह मुम्बई को एक दिन में देखना कुछ मुश्किल सा है पर फ़िर भी मैंने एक दिन की टैक्सी बुक कर दी थी। मेरा तोह मन लोकल ट्रेन में घूमने का था पर मम्मी साथ में थी इसीलिए टैक्सी लेनी पड़ी। टैक्सी का ड्राईवर भी टिपिकल मुम्बई का निकला, बोले तो सुलेमान भाई था उसका नाम। तोह लीजिये हम चल पड़े हैं उस हसीन शहर को देखने जिसे सपनों का शहर भी कहा जाता है। सपने, जिनके टूटने की पूरी पूरी गारंटी है पर उस सपने को पाने की उम्मीद को लेकर हर अजनबी मुम्बई सेन्ट्रल पर उतरता है।

पिछले एक साल में कई बार मैं यहाँ आ चुका हूँ और हर बार एक अजीब सा खिचाव महसूस करता हूँ मानो यह शहर मुझे अपनी पास बुला रहा हो। जब भी मैं यहाँ आता हूँ यह शहर बाहें फैला के मेरा स्वागत करता है। एक अजनबी के लिए यह काफ़ी आश्चर्य की बात है। मेरे लिए यह शहर अभी भी अजनबी है, पर शायद इसके लिए मैं अपरिचित नहीं। मुझे देखते ही यह मेरे कानो में फुसफुसाना शुरू कर देता है। अब तोह यह सड़कें भी अपनी सी लगती हैं, पर मैं कुछ बोल नहीं पाता, शायद ज़िंदगी की उधेड़बुन में खोया सा रहता हूँ।

मैं इस बार मुम्बई सोच कर ही आया था की सिद्धि विनायक के दर्शन किए बिना नहीं जाऊंगा। गणपति बाप्पा की कृपा से वह भी हो गए। अब कोई चिंता नहीं, सिद्धि विनायक की कृपा से सभी कुछ अच्छा ही होगा। मेरा छोटा भाई तोह सिद्धि विनायक के बाहर लगी कतार से डर रहा था पर मैंने बोल दिया की हम बिना दर्शन के नहीं हिलेंगे। मैंने सब के लिए सिद्धि विनायक का लड्डू भी लिया है। गणपति बाप्पा सब का भला करें।

हम हाजी अली की दरगाह पर भी रुके और बाबा हाजी अली मस्तान की दरगाह पे माथा टेक कर आगे बढ़ गए। बहुत दिन से मेरा मुम्बई को ऊपर से देखने का मन कर रहा था इसीलिए सुलेमान भाई से कहकर टैक्सी हंगिंग गार्डन की तरफ़ घुमा दी। हेन्गिंग गार्डन पे से मुम्बई शहकर को देखना एक ज़बरदस्त अनुभव है। ऐसा लगता है मानो आप किसी देश के सुलतान हों और अपनी प्रजा को देख रहे हो।

उसके बाद हम खाना खाने के लिए माहिम के एक पुराने होटल में रुके, इतना स्वादिष्ट खाना पूरी मुम्बई में नहीं मिल सकता। दिन भर की थकान पल भर में गायब। सचमुच यह एक जादुई नगरी है जो अपने प्यार की छत्री के नीचे हर इंसान को पनाह दे देती है। मेरे भाई अनुज का दिल शाहरुख़ खान का घर मन्नत देखने को कर रहा था सो हम paali हिल की तरफ़ रवाना हो चले। वाकई बैंड स्टैंड पर से मुम्बई के समुन्दर का नज़ारा देखते ही banata है। न जाने कितनी ही कहानिया जुड़ी हुई हैं उस जगह से। कहते हैं की यही वह जगह है जहाँ पर शाहरुख़ ने कहा था की वह एक दिन मुम्बई जीतेगा। बैंड स्टैंड मुम्बई के सबसे प्रसिद्ध जगहों में से एक है। यहाँ पर आके एक अजीब सा सुकून मिलता है। उस विशाल समुद्र के सामने हम ख़ुद को कितना छोटा महसूस करते हैं। एक पल में ही वह laharein सारे जीवन के डर और तनाव को बहा के ले जाता है। मैं अपनी ही धुन में जा रहा था की अचानक मेरे हाथ से मेरा मोबाइल खिसक कर पानी में गिर गया और मैं सपनों की दुनिया छोड़ हकीकत में वापस आ गया।

2 comments:

Anonymous said...

अच्छा ब्लॉग, लायनेल Ivanovic पसंद

Unknown said...

बहुत अच्छा चित्रण किया आपने।