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Saturday, May 17, 2008

कोई है?

कोई है ? कोई भी, कहीं भी
कुछ भी कहो, चीखो, चिल्लाओ
चलेगा। सन्नाटा चुभता है,
खामोशी से दोस्ती
कब तक?
एहसास का भी एहसास रहा नहीं।
कोहरे में छुपी हुई परछाई से भी,
बातें करे एक ज़माना हो चला है।
एक अँधेरा ही दोस्त बचा था,
वह भी सवेरे सवेरे कहीं निकल जाता है।
जागो मोहन प्यारे, क्या स्वप्न में गुफ्तगू चल रही है?
क्या कहा, गुफ्तगू ? यह किस चिडिया का नाम है?
हम तोह ख़ुद से ही गप्पे मार रहे थे।
स्वागत है aapkaa ढेर सारी गप्पे क्लब में।
यहाँ इंसान के सिवा हर cheez गप्पे maarti है।

5 comments:

Unknown said...

wah Huzoor wah!!!!!!

Anonymous said...

this is amazing man...really amazing...

Amit K Sagar said...

बहतु खूब. लिखते रहिए. शुर्किया.
---
यहाँ भी पधारे;
उल्टा तीर

विजयराज चौहान "गजब" said...

नए चिठ्ठे के लिए बधाई हो !
आशा रखता हूँ कि आप भविष्य में भी इसी प्रकार लिखते रहे |
आपका
विजयराज चौहान (गजब)
http://hindibharat.wordpress.com/
http://e-hindibharat.blogspot.com/
http://groups.google.co.in/group/hindi-bharat?hl=en

Sajeev said...

नए चिट्टे की बधाई, लिखते रहें, और हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करते रहें...
शुभकामनायें

आपका मित्र
सजीव सारथी