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Tuesday, July 28, 2009

हा हा ही ही क्लब


न जाने क्यूँ आज सुबह ही मुझे यह ख्याल आया की ज़िन्दगी की भाग दौड़ में हम लोगों ने हसना कम कर दिया है। एक समय हुआ करता था जब सुबह सवेरे आप किसी से मिलो तोह हर इंसान मुस्कुरा के आपका अभिनन्दन करता था। पर शायद इस घिच पिच होती ज़िन्दगी में सब कुछ गड़बड़ होता जा रहा है। खैर फ़िक्र नाट, जब RGB हैं तोह क्या गम है ;)

आपकी भागती हुई ज़िन्दगी में थोड़ा सा गुदगुदी भरा ब्रेक लगाने आ रहा है सोशल मीडिया का पहला " हा हा ही ही क्लब " अब आप सोच रहे होंगे की यह हा हा ही ही क्लब क्या करेगा? हुजुर घबराते क्यूँ हैं, हसने के यहाँ पैसे नहीं लगेंगे बल्कि आप जितना हसेंगे हम आपको दो तीन हसी मुफ्त में ही देंगे। आपकी हर सुबह को और खुशनुमा बनाने के लिए हम लेंगे कुछ पुराने लतीफे जो आज भी उतने ही नए हैं जितने की पहले थे। जैसे की सरदार संता सिंह और बनता सिंह के अजीबो गरीब किस्से जो आज भी हर किसी किसी की जुबां पे हैं। कुछ ऐसे ही किरदारों को मैं हर सुबह आपके नाश्ते में परोसने की कोशिश करूंगा। तोह चलिए दिल खोल के हसने को तैयार हो जाईये।

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