पर इसमें बुराई ही क्या है? समय के साथ हर चीज़ बदल गयी है, औद्योगिक क्रांति के साथ जहाँ इस देश की इकोनोमी बदली, वहीँ सूचना और प्रोद्योगिकी के माध्यम से सर्विस सेक्टर ने दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की की। हमारा रहन-सहन, बोलचाल की भाषा, हमारा मनोरंजन, हमारे बाज़ार और तो और हम सबकी सोच, आखिर सभी कुछ तोह बदल चुका है। पर इस निरंतर भागते हुए डिजिटल युग में कुछ और भी ऐसा बदला जिसके बारे में शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। वह उपभोगता जिसे २०वि शताब्दी में राजा कहा गया और कई विद्वान लोगों ने उसे भगवान का भी दर्ज़ा दे डाला, वही उपभोगता राजा से महान सम्राट बन चुका है और इसका नया रूप है "समुदाय" और यह समुदाय इन्टरनेट के युग में और भी सशक्त हो रहा है।
सदी की शुरुवात में शुरू हुए इन्टरनेट के इस युग में समुदाय नामक इस जीव ने रौद्र रूप ले लिया है जिसके विशालकाय रूप के आगे बड़ी बड़ी सरकारों और कंपनियों ने भी घुटने टेक दिए हैं। आज लोग एक दूसरे न सिर्फ जुड़े हुए हैं बल्कि हर छोटी बड़ी बात के बारे में चर्चा भी कर रहे हैं। मानो की एक मूक व्यक्ति को दोबारा आवाज़ मिल गयी हो। और इस आवाज़ को बुलंद करने के लिए अब वह अकेला नहीं है बल्कि उसके ही जैसे हजारों-लाखों लोग उसके साथ खड़े हैं। किसी भी बात को जंगल की आग की तरह फैलने में समय नहीं लगता। आँख झपकते ही लाखों मील दूर बैठे लोग पल भर में ही किसी भी घटना का हिस्सा बन जाते हैं।
समुदाय या जिसे कुछ लोग सोशल मीडिया भी कहते हैं , २१वि शताब्दी का सबसे बड़ा चमत्कार भी है। पर इस चमत्कार के पीछे भी कुछ गूढ़ रहस्य हैं जो हमारे समाज के बदलाव का आईना भी हैं। ध्यान रहे कोई भी भीड़ समुदाय या कम्युनिटी नहीं कही जा सकती। कम्युनिटी या समुदाय के पीछे कुछ ठोस कारण होना ज़रूरी है। चंद लोगों का इकठा होना ही कम्युनिटी नहीं हो सकता। समुदाय के जुड़े हर सदस्य का एक ही मकसद होता है जो उसको समुदाय से जोड़ कर रखता है। वैसे हर कम्युनिटी से जुड़े रहने का एक ठोस कारण हमारी इंसानी फितरत में ही छुपा है और वह है अकेलेपन से डर। आज हर इंसान अकेलेपन से डरता है, उसे हर काम के लिए किसी न किसी की ज़रूरत होती है। इन डिजिटल समुदायों के बनने के पीछे भी कुछ ऐसा ही कारण रहा होगा। आज हर बात के लिए हम कमुनिटी पे जाकर पता करते हैं की और लोग क्या कर रहे हैं। नया फ़ोन /गाडी खरीदनी है या फिर लम्बी यात्रा करनी है, बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापा कब इन डिजिटल समुदायों पे कट जाता है पता ही नहीं चलता।
पर डिजिटल समुदाय के साथ एकता की जो अटूट शक्ति का जन्म हुआ है उसकी बात ही कुछ और है। आज बड़े बड़े व्यापार और सरकारें इसी एकता की वजह से टूटते और बनते हैं क्यूंकि किसी एक के विचार भी समाज और लोगों की सोच में बदलाव ला सकते हैं। कहते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में बराक ओबामा को इसी कम्युनिटी कल्चर की वजह से जीत मिली। समुदाय की ताकात का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है?
अगले कुछ आने वाले लेखों में मैं समुदाय से जुड़े विषयों के बारे में चर्चा जारी रखूंगा की कैसे हम समुदाय में रहकर उससे होने वाने फायदों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। कैसे कोई व्यापार अपने व्यापर को समुदाय के माध्यम से बढा सकता है? इसके आलावा भी समुदाय से जुड़े और भी कई एहम मुद्दों को उठाया जाएगा।
तब तक...शुभ रात्रि !
आपका अपना
पियूष अग्रवाल
1 comment:
डिजिटल सोसाईटी की ताकत को सबने पहचाना है.
अच्छा आलेख.
जारी रहें.
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