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Friday, August 24, 2012

तुम अब भी मेरे दोस्त हो

 
तेरे भी कुछ फ़साने हैं,
मेरे भी कुछ फ़साने हैं.
चुप रहने के लिए तो,
सेंकडो बहाने है.
दो बात मैं कहूं,
दो बात तुम कहो.
बेजुबान रहने से,
कहाँ बनते तराने हैं.
 
चलो इस ख़ामोशी को,
मैं ही तोड़ता हूँ.
उन यादों का वास्ता दे,
टूटे दिल फिर जोड़ता हूँ.
पर जवाब देना तो,
तुम्हारा भी बनता है.
दोस्ती में छप रहना
नहीं चलता है.
 
उस नुक्कड़ की चाय को
फिर बाँट लेते हैं,
साथ इमली के चूरन को
फिर चाट लेते हैं.
यूँ आटने-बाटने में
ही समय गुज़ार लेंगे
तुझे दोस्त कहकर
फिर पुकार लेंगे

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