लो फ़िर से सब कुछ भुलाने का दिन आया है,
हजारों खुशियों में नहाने का दिन आया है,
गुजारिश है सौंप दो रंगों के हाथों में खुदको,
कृष्ण की बनसी पे खुद को नचाने का दिन आया है।
भंग का रंग भी चढेगा फिरसे,
रंग से ज़ंग भी होगी फिरसे,
रूठों को दोबारा मनाने का मौसम आया है,
हजारों खुशियों में नहाने का दिन आया है।
खड़ा है वृन्दावन तेरी राह में,
चेहरे पे रंग लगाने की चाह मे
उन भीगी गलियों में गुम जाने का दिन आया है,
लो होली मनाने का दिन फ़िर आया है।
जय श्री कृष्ण!
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