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Monday, February 16, 2009

फुर फुर फुर फुर

उड़ना मुझे पसंद है,
सूरज के सातों घोडों को
हवा के पंख लगा के उनकी सवारी करना,
एक विचित्र अनुभव है।
मनो मेरी कल्पना
कुछ पल के लिए बादलों के उस पार
खड़ी मुझपे मुस्कुरा रही हो।
अब तोह ऐसा लगता है की
इस निरंतर भागती कल्पना की गति
को रोक पाना काफ़ी कठिन है।

2 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

इस निरंतर भागती कल्पना की गति
को रोक पाना काफ़ी कठिन है
bahut sahi rachana. dhanyawaad.

Piyush Aggarwal said...

shukriya dost...aapki zarra nawazi ke liye :)