वैसे तोह आप सबने बचपन में , खासकर अपने स्कूल के दिनों में कई किस्से और कहानियाँ पढ़ी होंगी। कुछ कहानियों के पात्र तोह ऐसे होते थे जो हमेशा के लिए अपनी अमित छाप हमारे मस्तिष्क पे छोड़ जाते थे। अब मिसाल के तौर पे आर के नारायण द्वारा रचित मालगुडी देस के पात्र स्वामी को ही ले लीजिये , यूँ तोह स्वामी नौ - दस साल का एक छोटे गाँव का लड़का था पर जिस खूबी से उस पात्र ने सभी का दिल जीत लिया, यह वाकई में हैरत की बात है। स्वामी आजकल की पीढी से बिल्कुल अलग था, कभी कभी तोह सोच कर यह लगता है की क्या मालगुडी जैसी जगह वाकई में हो सकती है। इतने सरल, इतने साधारण लोग इस दुनिया के नहीं हो सकते। देखा जाए तोह जिस समय में मालगुडी लिखा गया था , वोह समय ही अलग था। शायद आज की इस राजधानी एक्सप्रेस जैसी ज़िन्दगी में स्वामी जैसे सरल पात्र को ढूँढ पाना कुछ मुश्किल सा मालुम पड़ता है। खैर बदलाव एक सच है और हम इससे मुँह नहीं मोड़ सकते, हर समय के साथ समाज में कई बदलाव आते हैं , व्यक्तियों में बदलाव आते हैं और देखते ही देखते आईने में दिखने वाली परछाई बदल जाती है। पर शायद इसे भारत देश का भाग्य कहें की वोह सरलता और वे साधारण लोग अब भी किसी कोने में छिपे दिख जाते हैं, खासकर हमारे हिंदुस्तान के छोटे शहर जैसे की कानपुर , आगरा, इलाहबाद, मेरठ इत्यादि।
अब आप जादा दूर न जायें, मिसाल के तौर पे हमारे प्यारे चाचा छक्कन को ही ले लो, जी हाँ , चाचा छक्कन कोई मामूली व्यक्ति नहीं है, एक ज़माने में चांदनी चौक के काफ़ी बड़े रईस हुआ करते थे इनके दादा-पड़ दादा। कहते हैं कई ज़माने पहले बहादुर शाह ज़फर के दरबार में इनके घर की शान के बारे चर्चे हुआ करते थे। पर समय के साथ खानदानी शान कुछ फीकी पड़ती रही। पर खानदानी रईस तोह भाई खानदानी रईस होते हैं, उनका मिजाज़ , उनके तौर - तरीके ही अलग होते हैं। हमारे चाचा छक्कन भी प्राण जाए पर शान न जाए में ही विश्वास करते हैं। आज भी आप उनके घर जायें तोह कहीं किसी कोने में पुरानी शान-ओ-शौकत का नज़ारा देखने को मिल ही जाएगा। वोह रंग उतरे मखमली परदे, घुसल खाने में थोडी सी बची चांदी की नक्काशी, रसोई घर में पुराने पीतल के बर्तनों का ढेर, और भी न जाने क्या क्या। पर ख़ास बात यह है की राज शाही थाट बाट जाने के बाद भी हमारे चाचा छक्कन आज भी अपने अन्दर एक शाही दिल रखते हैं। उनका मानना है की जो रुतबा उनका और उनके परिवार का एक ज़माने में रहा करता था , वे उसी रुतबे के साथ इस दुनिया से जाना चाहते हैं।
खैर चाचा छक्कन के बारे में हम तसल्ली से बताएंगे , आईये उनके घर के कुछ लोगों से भी आपको परिचित करा दें। चाचा छक्कन की दो बीवियां( शन्नो, कुमारी बहिन ) जिनसे उनके ३ बेटे ( अनुराग, रामदेव , शीतल ) और २ बेटियाँ ( कामिनी , वसुंधरा ) हैं, दोनों बेटियों की शादी उन्होंने काफ़ी ज़ोर शोर से की थी। कहते हैं चांदनी चौक में ऐसी शादियाँ काफ़ी कम ही देखने को मिलती हैं। वसुंधरा की शादी में तोह उनका खानदानी रसोइया बम्बई से बुलाया गया था। दोनों ही शादियों में दुल्हे रजा को घोडे के जगह शाही हाथी पे बिठाया गया। यहाँ तक की इक्कीस तोपों की जगह इक्कीस गोलियों की सलामी भी दी गई। और मेहमानों की खातिर में तोह कोई कमी नहीं छोड़ी गई। छप्पन तरह के पकवान , मिठाईयां, चांदनी चौक की मशहूर चाट, कुल्फी, बच्चों के लिए सर्कस के करतब , और भी न जाने क्या क्या। कुछ पल के लिए तोह लगा की शायद चाचा के शाही दिन वाकई वापस आ गए हों। बेटियों की शादी इस शान-ओ-शौकत से करने के लिए चाचा को अपना बचा खुचा सारा सोना बेचना पड़ा। कहते हैं न बड़े दिलवालों की तोह बात ही कुछ और होती है।
हम जानते हैं की आप चाचा की दो बीवियों के रहस्य के बारे में जानना चाहेंगे, तोह सुनिए हुआ यूँ की चाचा की पहली बीवी थी कुमारी बहिन ( इनका नाम कुमारी बहिन कैसे पड़ा यह किस्सा हम किसी और दिन सुनेंगे ), कुमारी से चाचा को हुई दो बेटियाँ कामिनी और वसुंधरा। अब चाचा की जो माँ थी वोह काफ़ी पुराने ख़यालात की थी, जब तक कामिनी थी तबतक ठीक ठाक था, वसुंधरा के होने पर घर में खूब बड़ा बवाल मच गया। यहाँ तक की चाचा की माँ ने कुमारी बहिन को मनहूस बता घर से निकालने तक का फ़ैसला कर लिया। फ़िर चाचा ने घर के बड़े बूढों से मशवरा लेने के बाद दूसरी शादी करने का तय किया। हालांकि इन सब में कुमारी बहिन के मन में कहीं मनहूस होने वाली बात घर कर गई। चाचा की दूसरी शादी के समय कुमारी बहिन बेटियों सहित अपने मायके चली गई और शादी होने के कई महीने बाद ही वापस आई। शुरू शुरू में अपनी सौतन शन्नो को अपने घर में देखना उन्हें एक आँख न भाता था, पर वोह भी क्या करती चाचा की जिद्द के आगे। चाचा की दूसरी शादी के कुछ साल में ही उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया, अब इतनी बड़ी हवेली में बचे सिर्फ़ चाचा, शन्नो , कुमारी बहिन और उनकी दो बेटियाँ। जैसे जैसे समय बीतने लगा शन्नो और कुमारी बहिन की बीच की दूरी थोडी कम होने लगी। हालांकि पड़ोस में लोग तरह तरह की बातें बनाते ही रहते पर चाचा के सामने किसी की कुछ भी बोलने की हिम्मत न होती।
शन्नो से चाचा को तीन बेटे हुए, सबसे बड़ा अनुराग, फ़िर रामदेव और सबसे छोटा शीतल। वैसे तोह चाचा का यह सख्त निर्देश था की किसी भी बच्चे के साथ सौतेला बर्ताव न किया जाए, पर कामिनी और वसुंधरा ने कभी भी अपने भाइयों और कुमारी बहिन को सौतेला नहीं समझा। पाँचों बच्चे पढने में काफ़ी अच्छे थे। कामिनी और वसुंधरा को स्कूल से गोल्ड मैडल भी मिल चुका था जिसे चाचा ने अपने दीवान के साथ सजा के रखा था और हर आने -जाने वाले को एक साल तक बिठा बिठा के दिखाते रहे।
जब शीतल पाँच साल का था, कामिनी की शादी चांदनी चौक के ही एक नामी वकील सुधीर बाबु से पक्की हो गई। सुधीर बाबु के पिताजी राए साहेब हमारे चाचा के कई साल पुराने मित्र हैं। एक समय इन्ही के परिवार ने चाचा को लेनदारों से छुटकारा दिलाया था। अपनी शान को बनाये रखने के लिए चाचा छक्कन के पिताजी ने कई लोगों से क़र्ज़ उठा लिया था जिसे वोह नहीं चुका पाए। यूँ तोह कहने को पुरानी दिल्ली में चार हवेलियाँ , पाँच दुकानें और कुछ छोटी फेक्ट्री भी हैं जिनके किराये से घर का खर्चा चल रहा था पर समय के साथ खर्चे बढ़ गए पर किराया वहीँ का वहीँ रह गया। बल्कि कुछ किरायेदारों ने तोह उसे अपना घर समझ के रहना शुरू कर दिया और पच्चीस साल के बाद भी वहीँ हैं। जब कभी चाचा मकान खाली करने की बात करते हैं तोह वे यह कहकर चुप करा देते की "आपको हमसे क्या तकलीफ है, हम किराया वक्त पे पहुँचा देते हैं और बिल्कुल अपना समझकर यहाँ रहते हैं। " और हमारे चाचा छक्कन का दिल भी तोह मोम है मोम, पिघल जाता है थोड़े से आंसू देखकर। इसी बात पे चाचा का कई बार शन्नो से झगडा हो चुका है जिसे रोकने के लिए कुमारी बहिन को बीच में आना पड़ता। एक बार तोह बात तलाक तक पहुँच गई थी जिसके बाद शन्नो अपने मायके चली गई और कुमारी बहिन के जिद्द करने पर ही चाचा उसे मन के वापस लाये । वैसे घर छोड़ के जाने की परम्परा चाचा के घर में काफ़ी पुरानी है। पर यह पहली बार ही है की चाचा अपने खानदान के उसूलों को भुला कर शन्नो को मना के ले आए।
यह लीजिये हम जिनकी बात कर रहे थे, वे ख़ुद ही आ गए। अब बाकी की बातें आपसे चाचा ख़ुद ही करेंगे मैं चलता हूँ। :)
अब आप जादा दूर न जायें, मिसाल के तौर पे हमारे प्यारे चाचा छक्कन को ही ले लो, जी हाँ , चाचा छक्कन कोई मामूली व्यक्ति नहीं है, एक ज़माने में चांदनी चौक के काफ़ी बड़े रईस हुआ करते थे इनके दादा-पड़ दादा। कहते हैं कई ज़माने पहले बहादुर शाह ज़फर के दरबार में इनके घर की शान के बारे चर्चे हुआ करते थे। पर समय के साथ खानदानी शान कुछ फीकी पड़ती रही। पर खानदानी रईस तोह भाई खानदानी रईस होते हैं, उनका मिजाज़ , उनके तौर - तरीके ही अलग होते हैं। हमारे चाचा छक्कन भी प्राण जाए पर शान न जाए में ही विश्वास करते हैं। आज भी आप उनके घर जायें तोह कहीं किसी कोने में पुरानी शान-ओ-शौकत का नज़ारा देखने को मिल ही जाएगा। वोह रंग उतरे मखमली परदे, घुसल खाने में थोडी सी बची चांदी की नक्काशी, रसोई घर में पुराने पीतल के बर्तनों का ढेर, और भी न जाने क्या क्या। पर ख़ास बात यह है की राज शाही थाट बाट जाने के बाद भी हमारे चाचा छक्कन आज भी अपने अन्दर एक शाही दिल रखते हैं। उनका मानना है की जो रुतबा उनका और उनके परिवार का एक ज़माने में रहा करता था , वे उसी रुतबे के साथ इस दुनिया से जाना चाहते हैं।
खैर चाचा छक्कन के बारे में हम तसल्ली से बताएंगे , आईये उनके घर के कुछ लोगों से भी आपको परिचित करा दें। चाचा छक्कन की दो बीवियां( शन्नो, कुमारी बहिन ) जिनसे उनके ३ बेटे ( अनुराग, रामदेव , शीतल ) और २ बेटियाँ ( कामिनी , वसुंधरा ) हैं, दोनों बेटियों की शादी उन्होंने काफ़ी ज़ोर शोर से की थी। कहते हैं चांदनी चौक में ऐसी शादियाँ काफ़ी कम ही देखने को मिलती हैं। वसुंधरा की शादी में तोह उनका खानदानी रसोइया बम्बई से बुलाया गया था। दोनों ही शादियों में दुल्हे रजा को घोडे के जगह शाही हाथी पे बिठाया गया। यहाँ तक की इक्कीस तोपों की जगह इक्कीस गोलियों की सलामी भी दी गई। और मेहमानों की खातिर में तोह कोई कमी नहीं छोड़ी गई। छप्पन तरह के पकवान , मिठाईयां, चांदनी चौक की मशहूर चाट, कुल्फी, बच्चों के लिए सर्कस के करतब , और भी न जाने क्या क्या। कुछ पल के लिए तोह लगा की शायद चाचा के शाही दिन वाकई वापस आ गए हों। बेटियों की शादी इस शान-ओ-शौकत से करने के लिए चाचा को अपना बचा खुचा सारा सोना बेचना पड़ा। कहते हैं न बड़े दिलवालों की तोह बात ही कुछ और होती है।
हम जानते हैं की आप चाचा की दो बीवियों के रहस्य के बारे में जानना चाहेंगे, तोह सुनिए हुआ यूँ की चाचा की पहली बीवी थी कुमारी बहिन ( इनका नाम कुमारी बहिन कैसे पड़ा यह किस्सा हम किसी और दिन सुनेंगे ), कुमारी से चाचा को हुई दो बेटियाँ कामिनी और वसुंधरा। अब चाचा की जो माँ थी वोह काफ़ी पुराने ख़यालात की थी, जब तक कामिनी थी तबतक ठीक ठाक था, वसुंधरा के होने पर घर में खूब बड़ा बवाल मच गया। यहाँ तक की चाचा की माँ ने कुमारी बहिन को मनहूस बता घर से निकालने तक का फ़ैसला कर लिया। फ़िर चाचा ने घर के बड़े बूढों से मशवरा लेने के बाद दूसरी शादी करने का तय किया। हालांकि इन सब में कुमारी बहिन के मन में कहीं मनहूस होने वाली बात घर कर गई। चाचा की दूसरी शादी के समय कुमारी बहिन बेटियों सहित अपने मायके चली गई और शादी होने के कई महीने बाद ही वापस आई। शुरू शुरू में अपनी सौतन शन्नो को अपने घर में देखना उन्हें एक आँख न भाता था, पर वोह भी क्या करती चाचा की जिद्द के आगे। चाचा की दूसरी शादी के कुछ साल में ही उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया, अब इतनी बड़ी हवेली में बचे सिर्फ़ चाचा, शन्नो , कुमारी बहिन और उनकी दो बेटियाँ। जैसे जैसे समय बीतने लगा शन्नो और कुमारी बहिन की बीच की दूरी थोडी कम होने लगी। हालांकि पड़ोस में लोग तरह तरह की बातें बनाते ही रहते पर चाचा के सामने किसी की कुछ भी बोलने की हिम्मत न होती।
शन्नो से चाचा को तीन बेटे हुए, सबसे बड़ा अनुराग, फ़िर रामदेव और सबसे छोटा शीतल। वैसे तोह चाचा का यह सख्त निर्देश था की किसी भी बच्चे के साथ सौतेला बर्ताव न किया जाए, पर कामिनी और वसुंधरा ने कभी भी अपने भाइयों और कुमारी बहिन को सौतेला नहीं समझा। पाँचों बच्चे पढने में काफ़ी अच्छे थे। कामिनी और वसुंधरा को स्कूल से गोल्ड मैडल भी मिल चुका था जिसे चाचा ने अपने दीवान के साथ सजा के रखा था और हर आने -जाने वाले को एक साल तक बिठा बिठा के दिखाते रहे।
जब शीतल पाँच साल का था, कामिनी की शादी चांदनी चौक के ही एक नामी वकील सुधीर बाबु से पक्की हो गई। सुधीर बाबु के पिताजी राए साहेब हमारे चाचा के कई साल पुराने मित्र हैं। एक समय इन्ही के परिवार ने चाचा को लेनदारों से छुटकारा दिलाया था। अपनी शान को बनाये रखने के लिए चाचा छक्कन के पिताजी ने कई लोगों से क़र्ज़ उठा लिया था जिसे वोह नहीं चुका पाए। यूँ तोह कहने को पुरानी दिल्ली में चार हवेलियाँ , पाँच दुकानें और कुछ छोटी फेक्ट्री भी हैं जिनके किराये से घर का खर्चा चल रहा था पर समय के साथ खर्चे बढ़ गए पर किराया वहीँ का वहीँ रह गया। बल्कि कुछ किरायेदारों ने तोह उसे अपना घर समझ के रहना शुरू कर दिया और पच्चीस साल के बाद भी वहीँ हैं। जब कभी चाचा मकान खाली करने की बात करते हैं तोह वे यह कहकर चुप करा देते की "आपको हमसे क्या तकलीफ है, हम किराया वक्त पे पहुँचा देते हैं और बिल्कुल अपना समझकर यहाँ रहते हैं। " और हमारे चाचा छक्कन का दिल भी तोह मोम है मोम, पिघल जाता है थोड़े से आंसू देखकर। इसी बात पे चाचा का कई बार शन्नो से झगडा हो चुका है जिसे रोकने के लिए कुमारी बहिन को बीच में आना पड़ता। एक बार तोह बात तलाक तक पहुँच गई थी जिसके बाद शन्नो अपने मायके चली गई और कुमारी बहिन के जिद्द करने पर ही चाचा उसे मन के वापस लाये । वैसे घर छोड़ के जाने की परम्परा चाचा के घर में काफ़ी पुरानी है। पर यह पहली बार ही है की चाचा अपने खानदान के उसूलों को भुला कर शन्नो को मना के ले आए।
यह लीजिये हम जिनकी बात कर रहे थे, वे ख़ुद ही आ गए। अब बाकी की बातें आपसे चाचा ख़ुद ही करेंगे मैं चलता हूँ। :)
10 comments:
Utter Crap!!
दोस्त मुझे ख़ुशी है तुमने मेरा ब्लॉग पढ़ा. मैं सीखने की कोशिश कर रहा हूँ. हो सके तोह मेरा ज्ञानवर्धन कीजिये ताकि मैं भविष्य मैं और अच्छा लिख सकूं
wat shit
शुक्रिया ब्लॉग पढने के लिए :) आशा है आप मेरे आगे के ब्लॉग पे भी अपने विचार व्यक्त करेंगे
Hi Piyush,
Good stuff. Waakai is raftaar bhari zindigi mein saral jeevan swapna sa lagta hai. Keep writing. all the best.
Saurabh
Hi Piyush,
Indeed a great start....
The story promises to be a great in the starts and as one reads, the 'grip' starts to lose a little...
I am sure you have talent and calibre to write more 'short' and 'gripping' stuff but as I mentioned, A great start and I am sure you will rock as a writer !!
Cheers!
Ramit
Thanks ramit for those words of appreciation. as you have clearly mentioned, I am learning and hoping to improve over the next 11 episodes of this series.
there will be 6 stories which will be covered in 12 parts ( 2 part each story ). Each story will have part 1 for introduction and part 2 for the main story.
Hey...good stuff...reminds me of hindi text book stories at school with colorful illustrations :) keep writing n ignore those who dont have brain enough to understand such stuff!
it's a good story. keep track of spelling though. dot the i's and cross the t's :)
Sahi hai modern day Premchand :)
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