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Thursday, August 06, 2009

एक संदेश चोर के नाम

प्यारे चोर भाई,

आशा है आप अभी तक दिल्ली की सीमा पार करके बहुत दूर निकल गए होगे। इतनी दूर की अब तोह आपसे इस जीवन में मिलना भी कठिन हो जाएगा। खैर कोई बात नहीं, कल दिन में घटी घटना के बाद मैं रात भर नहीं सो पाया, इसलिए नहीं की आप हमारी नई गाड़ी बिना बताये ले गए बल्कि इसलिए की उसके साथ आप न चाहते हुए काफ़ी कुछ और भी ले गए। शायद आपको नहीं पता पर हम एक मध्यम वर्ग परिवार हैं, मेरे माता -पिता दोनों का ही बचपन बहुत कठिन परिस्थितियों में बीता। जीवन भर दोनों ने अपनी नौकरी में परिश्रम करके कुछ छोटी छोटी खुशियाँ अपने परिवार के लिए खड़ी करी। मुझे आज भी याद है की मेरी और मेरे भाई की छोटी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उन्होंने हर वोह प्रयास किया जो वोह कर सकते थे। हमें पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलवाना, महंगी किताबें, खिलोने, कपड़े , वोह सब कुछ जो शायद एक मध्यम वर्ग के परिवार का एक सपना था, और उनका यह परिश्रम देख कर मैंने भी कभी किसी चीज़ के न होने की शिकायत नहीं की। इन सब बातों को देख कर मेरे दिल में सिर्फ़ एक ही ख्याल आया की मैं भी अपनी अगली पीढी को जितना सुख दे सकता हूँ दूँगा पर उनको यह बात ज़रूर याद दिला दूँगा की इन सबको पाने में न जाने कितनी और पीढियों का त्याग और तपस्या लगी हुई है।

खैर मैं नहीं जानता की आपने हमारी गाड़ी क्यूँ ली? शायद आपकी भी कोई मजबूरी रही होगी, कोई पुराना क़र्ज़ या बहन की शादी के लिए पैसों की ज़रूरत या फ़िर किसी के गुमराह करने के कारण। पर बात यहाँ एक गाड़ी की नहीं है , बात यहाँ एक परिवार की उन छोटी खुशियों की है जो काफ़ी अरसे बाद उन्हें मिली थी। एक इंसान जो कई सालों से चिलचिलाती गर्मी हो या बारिश या फ़िर ठेट सर्दी , वोह रोज़ कई किलोमीटर बच्चों को पढाने बसों में जाती थी, यह गाड़ी उसके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं थी। मैंने देखा है उसे बच्चों की तरह खुश होते, सिर्फ़ इस बात पे की ज़िन्दगी में पहली बार उसने अपनी पसंद की कुछ चीज़ खरीदी।

शायद गाड़ी ले जाते समय तुमने पिछली सीट पे रक्खे वोह हँसी और मासूम सपने नहीं देखे जिन्हें किसी ने बड़े ही चाव से उसे गाड़ी लेते समय बुना था। मैं जानता हूँ तुम शायद गाड़ी वापस न लौटा पाओ पर हो सके तोह वे सपने लौटा जाना क्यूंकि अब तोह वोह इंसान सपने देखने से भी डरने लगा है, और आज के बाद कृपा करके किसी मध्यम परिवार के सपनों को मत चुराना क्यूंकि क्या पता उन्हें फ़िर बुनने में और कितना समय लग जाए।

तुम्हारा शुभचिंतक
पियूष

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