सोच रहा हूँ ज़िन्दगी से थोडा कुछ मांग लेने में हर्ज़ ही क्या है।
सर्दियों की थोड़ी नर्म सी धूप,
और साथ में अपने गाँव के पीपल की छांव,
कुछ मट्टी भी मांग लेता हूँ गंगा किनारे की,
बारिश में नहाये खेतों की भीनी खुशबू के साथ,
सुबह के पंछियों की चेह्चाहाट भी मिल जाये तोह क्या बात है.
वह सजे हुए मेले
और पुरानी टुक-टुक की सवारी,
जादू की टोपी से निकला हुआ खरगोश,
वह मदारी के डमरू
पे थिरकता बन्दर,
बुढिया के कुछ उलझे हुए बाल,
दिवाली पे फुस्स हुआ बम,
कुछ गुमी हुई अठान्नियाँ भी माग लेता हूँ ज़िन्दगी से
आखिर हर्ज़ ही क्या है।
कुछ सुलझे हुए से लोग,
वह एकलौती राशन की दुकान,
कुछ पुरानी राखियाँ,
घर की मुंडेर से दिखता बाज़ार,
क्रिकेट का मैदान,
घर की विशाल बैठक,
वह गुमसुम छुटकू दोस्त,
वाकई, थोडा समय भी मांग लेता हूँ
ज़िन्दगी से.
आखिर हर्ज़ ही क्या है!
सर्दियों की थोड़ी नर्म सी धूप,
और साथ में अपने गाँव के पीपल की छांव,
कुछ मट्टी भी मांग लेता हूँ गंगा किनारे की,
बारिश में नहाये खेतों की भीनी खुशबू के साथ,
सुबह के पंछियों की चेह्चाहाट भी मिल जाये तोह क्या बात है.
वह सजे हुए मेले
और पुरानी टुक-टुक की सवारी,
जादू की टोपी से निकला हुआ खरगोश,
वह मदारी के डमरू
पे थिरकता बन्दर,
बुढिया के कुछ उलझे हुए बाल,
दिवाली पे फुस्स हुआ बम,
कुछ गुमी हुई अठान्नियाँ भी माग लेता हूँ ज़िन्दगी से
आखिर हर्ज़ ही क्या है।
कुछ सुलझे हुए से लोग,
वह एकलौती राशन की दुकान,
कुछ पुरानी राखियाँ,
घर की मुंडेर से दिखता बाज़ार,
क्रिकेट का मैदान,
घर की विशाल बैठक,
वह गुमसुम छुटकू दोस्त,
वाकई, थोडा समय भी मांग लेता हूँ
ज़िन्दगी से.
आखिर हर्ज़ ही क्या है!
4 comments:
बहुत सुन्दर ! आखिर कहने में हर्ज ही क्या है!
bahut khoob sab kuch to maang liya sir...bachpan ki har yaad...aur uske baad samay...
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
हर्ज तो कुछ नहीं..
बेहतरीन रचना!
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