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Saturday, October 16, 2010

आखिर ऐसा क्यूँ होता है?

आखिर ऐसा क्यूँ होता है? कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनके उत्तर जानने की इच्छा करना भी समाज में अटपटा माना जाता है। अगर आप दस लोगों के बीच में ऐसे सवाल पूछ लें तो शायद आपको उपहास के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होगा। ऐसे ही एक प्रश्न को लेकर उलझा हुआ था तो सोचा की आप लोगों के साथ ही बाँट लूं आखिर आप तो मेरे अपने ही हैं। पिछले चार सालों से निरंतर मेरा होंसला बढ़ा रहे हैं। खैर, बातें तो होती ही रहेंगी पर जिस खास बात के लिए मैं यह लेख लिख रहा हूँ वह तो बता दूं।
तो मुद्दा शुरू कुछ इस तरह से हुआ, हम अपने एक करीबी मित्र से अपने पारिवारिक जीवन में उत्पन्न होने वाली चिंता का ज़िक्र कर रहे थे जो वास्तव में हर इंसान के जीवन में कभी न कभी आती है। जी हाँ यह वह समस्या है जिसके आगे बड़े बड़े तीस मार खां और सूरमा भोपाली अपनी खोपड़ी खुजलाते पाए जाते हैं। आप सोच रहे होंगे क्या मैं तृतीय विश्व युद्ध किसके बीच होगा इसके विषय में तो चर्चा करने जा रहा? वैसे आपकी सोच काफी नजदीक है, यह विषय कुछ वैसा ही है। चलिए और शब्द बर्बाद न करते हुए मैं कह ही देता हूँ, जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ विवाह की। विवाह माने के शादी, क्या आपकी शादी हुई है? क्या कहा नहीं, चलिए तो फिर तो खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे कुंवारे दो। वैसे खुशनसीब हैं जो अब तक इस समस्या से आपका पला नहीं पड़ा है। खाड़ी देश का संकट या दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद की समस्या से छुटकारा मिल सकता है पर विश्व भर में फैली इस पौराणिक समस्या का हल कोई नहीं। सोचिये अगर श्री राम ने सीता मैय्या से विवाह नहीं किया होता, या फिर गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बीच में एक लाइन में ही सही, विवाह नामक समस्या से लड़ने के भी कुछ गुर बता दिए होते तो कितना अच्छा होता। खुद तो नन्दलाल ने सोलह हज़ार शादियाँ कर ली और समस्या आने वाले कई युग तक मुझ जैसे अनगिनत नौजवान झेल रहे हैं। अरे योगिराज यह क्या कर दिया तुमने :(

वैसे मेरे ख्याल से समाज को इस भीषण समस्या प्रदान करने में कई महापुरुषों का योगदान हो सकता है। सिर्फ श्री कृष्ण को दोष देना कुछ ठीक नहीं। हमारा इतिहास तो ऐसी महँ गाथाओं से सराबोर है, एक ढूँढो तोह हज़ार मिलती हैं, अब मुग़ल साम्राज्य को ही ले लीजिये। अरे हुज़ूर, उनके ज़माने में तो एक राजा और उसकी दस पंद्रह रानियाँ होना तो समझो एक फेशन स्टेटमेंट रही होगी। कमबख्त मानो ऊपर से ही रानियों और अपनी औलादों का कामन-वेल्थ समारोह मानाने की तय कर आये हों।

अब आप पूछेंगे मैं खा-म-खा इतिहास की इस नेहर में गोते लगवा रहा हूँ, आखिर मेरा सवाल है क्या?
अरे साहब आप तो बिलकुल भी शान्ति से नहीं बैठ सकते। कम से कम दो पल का सब्र तो कीजिये, वैसे आप और हम तो इस समस्या के भुक्त भोगी होने वाले हैं। मैं तो सिर्फ उन सज्जन या सज्जनी से मिलना चाहता हूँ और उनकी चरण वंदना करना चाहता हूँ जिन्होंने पूरी मानव जाती की बेंड बजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं की मेरी समस्या अभी दूर है पर संकट के बादल तो फिर भी मंडरा रहे हैं। कभी कभी बारिश से पहले ही छाता खोल लेना बेहतर है। क्यूँ , मैंने ठीक कहा न?

3 comments:

Swati said...

achcha ji! wah wah! :)

SKT said...

बिलकुल दुरुस्त कहा आपने! होता है , ऐसा भी कई दफा होता है!

Hanu said...

kaare badra kaare badra.. ab to paani barsao piyush bhai pe!