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Wednesday, April 28, 2010

लाख शब्दों में एक बात..बंद करो बंद करो!


बस और नहीं..कहा ना अब और नहीं झेला जाता यह शब्दों और समय के साथ होता हुआ दुर्व्यवहार। आप ही कहिये कब तक झेलें हम इन अल्ल्हड़ और पढ़े लिखे जाहिलों की जमात को। जब बोलना शुरू करते हैं तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते। एक बात को जब तक पचास तरीके से न बोल लें इन हज़रात को चैन ही नहीं पड़ता। ऐसा लगता है की रात को खाने में जादा खा लेने की वजह से इन्हें नींद नहीं आई और जिसका जुर्माना हम आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।

जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ कुछ उन लोगों की जो छोटी सी बात को १ किलोमीटर लम्बा करके बताते हैं। अरे भाई, कोई समझाओ इन्हें की समय का भी कोई मूल्य होता है, माना की आपके पास में उसकी भरमार है पर इसका मतलब यह नहीं कीहम सब की झोली में जो थोडा समय बचा है आप उसे भी हमसे छीन लेंगे। मुझे सख्त नफरत है उन लोगों से जो एक ही बात को दस तरीके से बोलते हैं, या अपने को सही साबित करने में सारा जीवन निका देते हैं। आपको भी कभी मिलें तोह गौर से देखिएगा इन सज्जन पुरुष को, वैसा बातें तो काफी मजेदार करते हैं पर समस्या है की बहुत सारी करते हैं। इन्हें सिर्फ मौका चाहिए शुरू होने के लिए, फिर देखिये, चूहे के दांत और दर्जी की केंची एक तरफ, इनकी ज़बान दूसरी तरफ।

आप ही कहिये, जो बात चंद शब्दों में कही जा सकती है उसे कहने के लिए वाल्मीकि रामायण लिखने की क्या ज़रुरत है। औरफिर भी किसी का मन न भरे तो वे सूरदास, कालिदास को भी पीछे छोड़ दें। मैं तोह कहूँगा की यह एक तरह का सामाजिकअत्याचार है और इसे करने वाले से जादा झेलने वाला दोषी है क्यूंकि वह उसे बढ़ावा दे रहा है जिसकी वजह से कल कोई औरइसी अत्याचार का शिकार बनेगा।

यह सब बातें में यूँ ही हवा में नहीं बोल रहा हूँ, पिछले ५ सालों के एक्सपीरिएंस के कारण कह रहा हूँ। भारत में यह पटर पटरकरने की सभ्यता नहीं थी, कमबख्त यह अंग्रेजों की अंग्रेजी ने घिटिर-पिटिर सिखा दी आजकल के नौ जवानों को। खैर बातयहीं समेटते हुए आपकी इजाज़त चाहूँगा वर्ना कोई मुझपे भी ऊँगली उठा सकता है जादा पटर पटर करने के लिए।

इसीलिए मैं आग्रह करूंगा अपने प्यारे भारत वासियों से की - लाख शब्दों में एक बात कहना - बंद करो , बंद करो !

2 comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अग्रवाल जी, ऊपर वाले नें इस देशवासियों को एक यही तो गुण बख्शा है और आप हैं कि इसे भी समाप्त कर देना चाहते हैं! :-)

Piyush Aggarwal said...

अजी हम कौन होते हैं कुछ बोलने वाले. हमारी मजाल जो हम इन लोगों के सामने कुछ बोल सकें...और वैसे भी वत्स जी मेरी तौबा जो मैं कुछ कहूं इनसे :)